बलिया : ‘विरासत’ बचाने और ‘जनेऊ’ तोड़ ‘जीत’ हासिल करने चल रही है जंग…

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बड़ा सवाल : क्या भाजपा प्रत्याशी नीजर शेखर विरासत बचाने के साथ ही जीत की हैट्रिक लगा पायेंगे !

बड़ा सवाल : क्या सपा प्रत्याशी सनातन पाण्डेय सपा ब्राम्हण चेहरा को जीत का सेहरा पहना पायेंगे !

   संजय पुरबिया

बलिया। क्रांतिकारियों के शहर बलिया में ‘चुनावी तपिश’ धधक रही है। ‘जातिवाद के जहर’ में जकड़े पूर्वांचल का मिजाज बेहद गरम है। खामोश मतदाताओं ने मानों ठान लिया हो किस इस बार सत्ता का स्वाद उस प्रत्याशी को चखायेंगे,जिसने उनका काम किया हो या मुसीबत के समय उनके कंधे से कंधा मिलाकर चला हो । सवाल गंभीर है। दल कोई भी हो,चुने गये सांसद या विधायक, जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा नहीं उतरे हैं और इसी का खामियाजा प्रत्याशियों को भुगतना पड़ेगा। वैसे भी बलिया के मतदाता किसी क्रांतिकारी से कम नहीं हैं क्योंकि इनके खून में ही बागी तेवर देखने को मिलता है। इस बार लोकसभा चुनाव भाजपा और सपा के बीच ‘वर्चस्व की जंग’ के रुप में देखी जा रही है। यूं कह सकते हैं कि पूरा बलिया दो खेमों में बंट गया है। जहां भाजपा प्रत्याशी नीरज शेखर अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री स्व: चंद्रशेखर जी की विरासत को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं वहीं सपा प्रत्याशी सनातन पाण्डेय इतिहास की जंजीरों को तोड़ ब्राम्हण चेहरा के रुप में जीत दर्ज कर आजादी के बाद से चली आ रही मिथक को तोडऩे को बेकरार है। सीधी बात करें तो बीजेपी जीत की ‘हैट्रिक’ मारने के मूड में है तो सपा अपनी खोयी सीट को हासिल करने का ‘सपना’ देख रही है, लेकिन जिस तरह से दो दिनों में सपा छोड़ नारद राय भाजपा में शामिल हुये,उससे सियासी हलके में भूचाल सा आ गया। नारद राय और उपेन्द्र तिवारी के भाजपा में होने से भूमिहारों का एक बड़ा वोट बैंक सपा से छिटक कर भाजपा की ओर जाने का संकेत है। बता दें कि नारद राय और उपेन्द्र तिवारी को भूमिहारों पर अच्छी- खासी पकड़ है। यदि ऐसा हुआ तो सनातन पाण्डेय के माथे पर सिलवटें बढ़ सकती है।

चलिये छठे चरण का मतदान 2 जून को होना है और देखते हैं कि क्रांतिकारी मतदाता इस बार भी कमल खिलाते हैं या फिर साइकिल की रफ्तार तेज करते हैं। बलिया लोकसभा सीट से आठ बार के सांसद नीरज शेखर इस बार बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं। वहीं, दूसरी ओर सनातन पांडेय बीजेपी उम्मीदवार नीरज शेखर के सामने चुनौती पेश कर रहे है। थोड़ा पीछे नजर डालें तो बलिया लोकसभा ब्राह्मण बहुल होने के बाद भी यहां से आज तक किसी भी दल का ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका है। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन प्रत्याशी सनातन पांडेय 4 लाख 53 हज़ार 595 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे, बीजेपी उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह ने 4 लाख 69 हज़ार से अधिक वोट पाकर लगभग पंद्रह हज़ार मतों से जीत दर्ज की थी। सवाल यह है कि क्या समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पांडेय पिछले लक्ष्य को छू पायेंगे ? पिछले चुनाव में एसपी का बीएसपी के साथ गठबंधन होने के कारण दलित मतदाताओं ने सनातन पांडेय पर विश्वास जताया था, लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी ने ललन सिंह यादव को मैदान में उतार कर अपने पुराने मतदाताओं को दोबारा पार्टी के साथ जोडऩे की दिशा में क़दम उठाया है।

हालांकि इंडिया गठबंधन ने संविधान और आरक्षण पर ख़तरे को चुनावी मुद्दा बनाकर दलित मतदाताओं में सेंध लगाने का काम किया है। बलिया में यादव मतदाता लगभग 12 फीसदी, मुस्लिम मतदाता लगभग 8 फीसदी और बनिया मतदाता लगभग 8 फीसदी हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ब्राह्मण, यादव, मुस्लिम मतदाता एसपी उम्मीदवार सनातन पांडेय के साथ नजर आ रहे हैं। वहीं ठाकुर, बनिया, भूमिहार मतदाता बीजेपी के साथ जाते नजऱ आ रहे हैं। शहरी क्षेत्र की बात करें तो शिक्षित वर्ग लगभग भाजपा की ओर झुकता नजर आ रहा है। बहुजन समाज पार्टी के कोर मतदाता माने जाने वाले दलित मतदाता इस बार अपने मूल दल से संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर हिलते नजर आ रहे हैं। प्रदेश के साथ ही बलिया की राजनीति में भी दलित मतदाताओं की भूमिका निर्णायक होने वाली है। देखना दिलचस्प होगा कि दलित मतदाता किस पर विश्वास जताते हैं।

बलिया की राजनीति की बात करें तो जातीय समीकरणों पर टिक चुकी है। यही वजह है कि जब राजनीति में जाति की बात आती है तो विकास के मुद्दे गौण हो जाते हैं, न तो कोई बलिया की मूलभूत आवश्यकताओं के विषय में कोई बात करता है और न ही कोई पॉलिसी की बात करता है। विपक्ष महंगाई और बेरोजग़ारी को मुद्दा बना रहा है लेकिन क्या ये लोग बेरोजग़ारी ख़त्म कर देगा? यहां लड़ाई समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पांडेय और बीजेपी उम्मीदवार नीरज शेखर के बीच कड़ी टक्कर है। पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार चुनावी रंग बलिया में कुछ कम ज़रुर नजर आता है लेकिन बीजेपी से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर के मैदान में आने के बाद चुनावी रंगत थोड़ी बढ़ी है। जहां बीजेपी समर्थक एक तरफ़ा जीत का दावा कर रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी समर्थक नीरज शेखर के लिसे राह आसान नहीं मान रहे हैं। हाल ही में दो दिनों में बलिया की राजनीति में जो बड़ा बदलाव हुआ,वो है सपा के कद्दावर नेता नारद राय का भाजपा में आना। नारद राय बलिया के प्रतिष्ठित नेताओं में गिने जाते हैं।

बताया जाता है कि बलिया की रैली में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंच पर नारद राय का नाम नहीं लिया, इसलिये वह नाराज़ होकर बीजेपी में शामिल हो गये। हालांकि राजनीतिक लोग मानते हैं कि नारद राय पिछले लोकसभा चुनाव में पूरी तरह खुलकर एसपी प्रत्याशी सनातन पांडेय के साथ थे लेकिन विधानसभा चुनाव में जब नारद राय प्रत्याशी बने तो सनातन पांडेय ने उनका साथ नहीं दिया था। यहां पर भूमिहारों की संख्या बहुतायत है। कुछ समय पहले तक भूमिहार मतदाताओं की संख्या बहुत नहीं रही है लेकिन परिसीमन के बाद गाज़ीपुर जिले की मुहम्मदाबाद और जहूराबाद दो विधानसभाएं इस लोकसभा में जुडऩे से यहां भूमिहार मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। समाजवादी पार्टी के पास कोई भूमिहार चेहरा नहीं है इसलिये उनके बीजेपी में जाने से कुछ न कुछ फ़ र्क ज़रूर पड़ेगा। अब बलिया के दोनों बड़े भूमिहार चेहरे उपेंद्र तिवारी और नाराद राय बीजेपी में शामिल हो गये हैं। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत भूमिहार मतदाता की संख्या अच्छी-खासी है।

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