झांसी का था लखनऊ में हादसे का शिकार परिवार
इस बार भी देर से लौटेगा मानसून
लखनऊ।
यूपी में लंबे इंतजार के बाद मेहरबान हुआ मानसून कई परिवारों के लिए मौत बनकर आया। गुरुवार शाम से शुरू हुई मूसलाधार बारिश ने प्रदेश में 23 लोगों की जान ले ली। सबसे बड़ा हादसा लखनऊ में हुआ। यहां भारी बारिश के कारण शुक्रवार तड़के कैंट इलाके में दिलकुशा कॉलोनी के पास सैन्य परिसर की निर्माणाधीन चहारदीवारी ढह जाने से दो बच्चों समेत एक ही परिवार के नौ लोगों की दबकर मौत हो गई। हादसे के शिकार सभी लोग झांसी के रहने वाले थे। मृतकों में दंपति और उनके दो बच्चे भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना पर गहरा दुख जताते हुए परिजनों के लिए चार लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है।
झांसी के पछवारा निवासी कई मजदूर लखनऊ आकर काम कर रहे हैं। इनमें शामिल पप्पू (50) एक ठेकेदार के साथ कैंट आया था। यहां ठेकेदार ने सैन्य परिसर में निर्माण के लिये कई मजदूरों की जरूरत बताई थी। इस पर पप्पू अपने परिवार और कई रिश्तेदारों को चार माह पहले यहां ले आया था। यह सभी सेना की दीवार के पास झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। चंद कदम पर उनका काम भी चल रहा था। स्थानीय लोगों के मुताबिक तड़के करीब साढ़े तीन बजे अचानक चीख पुकार मची तो वे लोग वहां पहुंचे। देखा तो दीवार ढह गई थी और उसमें कई लोग दबे हैं। सेना के जवान ने ही इसकी सूचना आला अफसरों और पुलिस को दी। इस दौरान हादसे से बचे दूसरे मजदूर साथियों को मलबे से निकालने में जुटे थे।
सितंबर में अमूमन इतनी बारिश नहीं देखी जाती। ये मानसून के लौटने का समय होता है, लेकिन इस बार जोरदार बारिश हो रही है। ऐसे में अनुमान है कि मानसून लगातार दूसरे साल देरी से लौटेगा। पिछले साल भी मानसून 15 अक्तूबर के आसपास लौटा था। साठ साल में लगातार दूसरे साल मानसून के देरी से लौटने का अनुमान है। साल 1960 में आखिर बार मानसून देर से विदा हुआ था। मौसम विभाग के मुताबिक 1901 के बाद ऐसा चौथी बार होगा।
मौसम विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक 1901 के बाद ऐसा चौथी बार होगा, जब सितंबर में इतनी बारिश होगी। साल 1917 में सिर्फ सितंबर माह में 285.6 मिमी बारिश हुई थी। मौसम विज्ञानी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते बंगाल की खाड़ी में सितंबर के दौरान दो-तीन बार कम दबाव का क्षेत्र बना। इसके बाद गहरा विक्षोभ पैदा हुआ। बारिश वाले बादलों की गतिविधियां एकाएक उत्तर से लेकर पूर्वी तट तक सक्रिय हो गईं। मौसम विज्ञानी मानते हैं कि अब ऐसा बार-बार हो सकता है। जब भी लो प्रेशर का ऐसा क्षेत्र बनता है तो असर 10 दिनों तक आमतौर पर रहता है।