दिव्यांश श्री.
लखनऊ। बनारस के रामायणी पंडित शंकर प्रसाद व्यास एक दिन कैंची में महाराज जी के साथ टहल रहे थे। बाबा का हाथ व्यास जी के कंधे पर था। दोनों लोग मौन रहें। अचानक व्यास जी के मन में विचार आया कि लोगों की इस बात पर कैसे विश्वास किया जाये कि महाराज जी हनुमान जी के अवतार है। यह विचार आते ही बाबा का हाथ वजनी होने लगा। धीरे-धीरे उसका वजन इतना बढ़ गया कि व्यास जी का कंधा उसका भार वहन करने में असमर्थ होने लगा लेकिन हाथ का आकार यथावत था। व्यास जी भीतर ही भीतर परेशान हो उठे। वे बाबा के हाथ को हटा भी नहीं सकते थे। वह मन ही मन हनुमान जी से प्रार्थना करने लगे कि उनकी धृष्टता को क्षमा करें। हनुमान जी (महाराज जी) की प्रार्थना सुन ली और बाबा का हाथ पूर्ववत हो गया। इस प्रकार व्यास जी की धारणा पक्की हो गयी कि बाबा वास्तव में हनुमान जी के अवतार हैं।
एक दिन व्यास जी ने हनुमान जी से साक्षात दर्शन की इच्छा महाराज जी से व्यक्त की। महाराज जी ने कहा कि ‘उनके दर्शन बर्दाश्त कर पायेगा’। इतना कहकर बाबा मौन हो गये। व्यास जी भी कुछ नहीं बोले। उसी रात एकाएक व्यास जी की नींद खुली। अर्धरात्रि कासमय रहा होगा,व्यास जी दरवाजा खोलकर लघुशंका के लिये बाहर निकले ही थे कि उनके आंखों के सामने एक तेजोमय कनक-भूधराकार आकृति आ खड़ी थी। इस आकृति को देखकर व्यास जी इतने डर गये की तुरंत कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर भहरा गये। इसके बाद उनके कमरे में बाबा आये। उन्होंने व्यास जी ऊपर हाथ फेरते हुये पूछा तबीयत ठीक है? व्यास जी के भीतर का डर जाता रहा और वे बाबा की चरणों में गिर पड़े। महाराज जी की कई अन्य लीलाओं से प्रकट होता था कि सही मायने में वे हनुमान जी के अवतार थे। वृंदामन आश्रम में स्थापना के लिये जयपुर से लायी गयी हनुमान जी मूर्ति खंडित हो गयी थी जिसे बिना किसी प्रयास के महाराज जी ने उसमें सुधार कर दिया। वृंदावन आश्रम की घटना है। बाबा का एक भक्त उनके दर्शन के लिये आया था। उसके साथ उनका एक मित्र भी था,जो नास्तिक था। बाबा ने अपने भक्त को अपने पास बैठा दिया लेकिन उसके साथ आये व्यक्ति को हनुमान मंदिर के चबूतरे पर बैठने को कहा। वहां बैठे-बैठे उस व्यक्ति को काफी समय होगया,फिर ज्योंहि उसने मुड़कर पीछे देखा, हनुमान जी की मूर्ति से आंसू निकल कर वक्ष पर गिर रहे थे। इस दृश्य से उनकी बुद्धि चकरा गयी और उसके विचारों में मौलिक परिवर्तन होने लगा। जिसे वो पत्थर की मूर्ति मात्र मान रहा था उसमें उसे हनुमान जी का आभास होने लगा।
कलयुग में राम नाम की धुन और हनुमत कृपा पाने का सच्चा धाम श्री कैंची धाम,उत्तराखण्ड में पूरे विश्व के भक्तों के लिये आस्था का केन्द्र बना हुआ है। श्री नीम करौरी बाबा ने कैंची आश्रम में अपने भक्तों को सरल भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया और उसका मार्गदर्शन किया है। एक बार कैंची आश्रम में नीम करौरी बाबा से किसी ने पूछा बाबा जी आपका कोई सत्संग नहीं होता। बाबा बोले कि यहां यही सत्संग है कि आओ खाओ और जाओ। बाबा जी ने कभी किसी पर उपदेश, आदेश, सत्संग जैसा नहीं थोपा। उनके द्वारा भक्तों को किसी नियम में नहीं बांधा जाता था। बस भोलेपन से उनकी भक्ति करो। साधना को वे आम आदमी के लिये बहुत कठिन बताते थे। कहते थे कि पागल हो जाओगे। बस राम-राम करते रहो। यही भक्ति कर लो। झूठ झूठ तो बोलो राम। एक दिन सच्चा राम निकल आयेगा और उसी क्षण राम मिल जायेंगे। आडंबरों,प्रपंचो से हमेशा सबको बचाते थे बाबा। बस भक्ति मार्ग को ईश्वर प्राप्ति का साधन बताते थे। भक्ति से उनका तात्पर्य था राम नाम,चाहें वे किसी भी रुप में हो- रामायण, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, कुछ भी। बस राम नाम का उच्चारण। यही रास्ता था बाबा को पाने का,राम को पाने का,हनुमान को पाने का। बस बाबा को प्रसन्न करना है तो भक्ति की राह पर चल पडिय़े। बाबा स्वयं आपका हाथ पकड़ लेंगे। आप एक कदम दीजिये,वो दस कदम आगे बढ़ेंगे आपके लिये।