नए भारत के शिक्षित युवा सफल उद्यमी बनने के लिए कितने आतुर हैं।

लखनऊ में नर्सरी, संरक्षित खेती, मूल्य वृद्धि, जैविक खेती, मशरूम उत्पादन और टिशू संस्कृति पर होर्टी-उद्यमिता कार्यशाला।

नए भारत के शिक्षित युवा सफल उद्यमी बनने के लिए कितने आतुर हैं।

लखनऊ रहमानखेड़ा में आयोजित उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम के लिए उनके आकर्षण से पता चला। 68 स्नातकों व पीएचडी उम्मीदवारों और 7 अच्छी तरह से शिक्षित किसानों की 16 जिलों और 4 राज्यों (बिहार,जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) से भागीदारी ने उद्यमशीलता विकास में बागवानी आधारित प्रौद्योगिकियों के महत्व और दायरे को भी इंगित किया। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमान खेड़ा में नर्सरी,संरक्षित खेती, मूल्य वृद्धि, जैविक खेती, मशरूम उत्पादन और टिशू संस्कृति पर होर्टी-उद्यमिता कार्यशाला में भाग लेने के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इंस्टीट्यूट वेब साइट पर पंजीकृत कुल 115 उम्मीदवारों में से 75 लोग एक दिवसीय प्रशिक्षण में सामिल हुए।

संस्थान के निदेशक डॉ0 शैलेन्द्र राजन ने उद्घाटन सत्र में कार्यशाला में प्रतिभागियों का स्वागत किया और शिक्षित युवाओं के लिए खुशी व्यक्त की ताकि वे खुद को नौकरी तलाशने के बजाय अपने को उद्यमी के रूप में विकसित कर सकें। उन्होंने कहा कि फसलों की नर्सरी, सब्जी फसलों की नर्सरी, उच्च मूल्य वाले फल और सब्जी फसलों की संरक्षित खेती, जैविक खेती, ऊतक संस्कृति पौधे और मशरूम उत्पादन उद्यमिता के लिए कई तकनीकें हैं। फलों और सब्जी फसलों की प्रसंस्करण में व्यावसायिक अवसर बढ़े हैं।
मुख्य अतिथि, डॉ मथुरा राय, पूर्व निदेशक, आईवीवीआर, वाराणसी ने बताया कि विभिन्न फसलों का बीज उत्पादन अत्यधिक लाभकारी उद्यम हो सकता है। अरिमर्डन सिंह, एडीजी (एमएंडसी) (एसएजी), पीआईबी, लखनऊ ने उद्यमिता विकास पर अपने विचार व्यक्त किए। रवि पांडे, अनुसंधान अधिकारी, आईआईटी, कानपुर ने स्टार्ट-अप और उद्यमिता के आधार पर प्रोत्साहित किया। डॉ0 एस आर सिंह द्वारा सब्जी फसलों की नर्सरी पर व्याख्यान किया गया। डॉ वी के सिंह द्वारा उच्च मूल्य वाले फल और सब्जी फसलों की खेती के संरक्षण पर चर्चा की। डॉ0 आर.ए. राम द्वारा कार्बनिक खेती, डॉ मनीष मिश्रा द्वारा ऊतक संस्कृति और हार्डनिंग, डॉ पीके शुक्ला द्वारा मशरूम उत्पादन की जानकारी दी गयी। सविता श्रीवास्तव ग्रामोदय सेवा संस्थान, लखनऊ द्वारा फलों और सब्जी फसलों की प्रसंस्करण की जानकारी दी। डॉ0 अशोक कुमार ने कहा कि कैसे कृषि-क्लिनिक व्यवसाय विकसित किया जा सकता है। बाद में प्रतिभागियों के हित के अनुसार,संबंधित वैज्ञानिकों के साथ संबंधित प्रौद्योगिकियों पर हाथ से प्रशिक्षण के लिए समूहों का गठन किया गया व विभिन्न प्रयोगशालाओं में जाकर प्रशिक्षण दिया गया ।

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