सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने महंत राजूदास पर बोला हमला
कानपुर। हमने किताबों में पढ़ा था कि साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों को गुस्सा नहीं आता। गुस्सा आ जाए तो बैठे-बैठे वहीं से शाप देकर काम तमाम कर देते हैं, लेकिन इन धर्माचार्य के बयान से उनका असली चेहरा सामने आ गया कि धर्माचार्य के रूप में एक कुख्यात अपराधी मेरा सिर काटने के लिए 21 लाख रुपये का इनाम दे रहा है। ये बातें सोमवार रात पूर्व मंत्री भगवती प्रसाद सागर की बेटी की शादी में शामिल होने रतनलाल नगर स्थित गेस्ट हाउस में आए सपा नेता व पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहीं।
सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार रामचरित मानस पर विवादित टिप्पणी कर रहे हैं। उनके बयानों के दायरे में साधु संत भी आए हैं। इसको लेकर अयोध्या हनुमान गढ़ी से जुड़े महंत राजूदास ने टिप्पणी पर आपत्ति दर्ज जताते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य का सिर काटने वाले को 21 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी। उनके इनाम घोषित करने के बाद सोमवार रात स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि धर्माचार्य को जप तप में विश्वास होता तो अयोध्या में बैठे बैठे शाप देकर मुझे स्वाहा कर सकते थे। उनके 21 लाख रुपये भी बच जाते और असली चेहरा भी सामने नहीं आता। धर्म की चादर ओढ़कर ऐसे कुख्यात हिस्ट्रीशीट अपराधी जो मार काट, सिर काटना, नाक, कान काटना जैसी बात करते हैं, वे संत हो ही नहीं सकते।उनके मुताबिक वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन गाली देना, किसी को अपमानित करना धर्म नहीं है।
धर्म मानव कल्याण और मानव सशक्तीकरण के लिए होता है।देश की महिलाओं, आदिवासी, दलितों को सम्मान दिलाने के लिए आवाज उठी है तो पूरा देश एक साथ खड़ा है, लेकिन चंद लोग आदिवासियों, दलितों, महिलाओं को अपमानित करना अपना धर्म मानते हैं, जो धर्म के नाम पर अधर्म, मारने-पीटने, अपमानित करने की बात करते हैं। उनके ही पेट में दर्द है।शेष पूरे देश के लोग, बुद्धिजीवी, गांव का आम आदमी सब एक मत से एक साथ खड़ा है। रामचरित मानस से हमारा कोई मतलब नहीं है।कुछ चौपाई के वो अंश जिससे इस देश के शूद्र समाज में आने वाली जातियों को जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर अधर्म कहा गया।
शूद्र कितना भी विद्वान पढ़ा लिखा हो और कितना बड़ा ज्ञाता क्यों न हो। उसका सम्मान नहीं करना चाहिए। ये कहां का न्याय है। कहा कि लड़कों ने रामचरित मानस की कोई प्रति नहीं जलाई। लड़कों ने दफ्ती में धर्म के नाम पर गाली नहीं सहेंगे-नहीं सहेंगे लिखकर जलाया है। किसी आपत्तिजनक शब्द को प्रतिबंधित करने, बाहर निकालने, संशोधित करने की मांग करना कानूनी तौर पर अपराध नहीं है।