पीसीएस जयप्रकाश शुक्ल का मिशन :आर्थिक तंगी की मजबूरी से दम नहीं तोडऩे देंगे टैलेंटेड बच्चों को…

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जयप्रकाश शुक्ल का संकल्प: बेसहारों का सहारा बन कमायेंगे नाम …

‘गंगा मईया’ की नगरी प्रयागराज में गरीबों के लिये मसीहा बने जयप्रकाश शुक्ल

 संतोष सुदर्शन

इलाहाबाद। प्रतापगढ़ के गांव गोगलापुर पट्टी के खेत-खलिहान में खेलने-कूदने वाला लड़का अपनी परवाह ना कर गरीबों की हर तरह से मदद करने की सोचता रहता था। ‘राह’ में कोई असहाय दिखे,किस के पास खाने की ‘रोटी’ नहीं होती तो वो लड़का अपनी ‘अम्मा’ से खाने के लिये रोटी मांगता और खुद ना खाकर ‘भूखे’ का पेट भरने निकल जाता…। ठेठ गंवई अंदाज,जिसमें ना कोई स्वार्थ,ना ही कोई भेदभाव की भाषा होती है,इसी पिटारे को लेकर वो लड़का निकल पड़ा इलाहाबाद में शिक्षा ग्रहण करने…। वो नौजवान अपनी ‘मुस्कान’ बिखेर कर सभी को अपना बना लेने की ‘कला’ और’ बड़ी सोच‘ के साथ कम्प्टीशन की तैयारी करता और खाली समय में गरीब बेसहारा बच्चों को कॉपी,किताब,फीस,मेज-कुर्सी देकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में उनका साथ देता। इतना ही नहीं,इनकी टीम में कई युवा हैं जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीछे गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये तैयार करते हैं। इसके अलावा 350 से अधिक जोड़ों को वैवाहिक बंधन से जोडऩे का पावन काम भी कर चुके हैं। सामाजिक कार्यों में उन्होंने इतना नाम कमाया कि ‘गंगा मईया‘ के शहर में यदि कहीं ब्लड देने की जरूरत पड़ती तो सभी की जुबां पर बस एक ही नाम होता ‘जय प्रकाश शुक्ल’ …। जी हां,मैं बात कर रहा हूं असिस्टेंट कमीश्नर,सेल टैक्स के पद पर बरेली में तैनात जय प्रकाश शुक्ल की। श्री शुक्ल का कहना है कि एक सरकारी सेवक के जीवन का मूलमंत्र होता है कि समाज में कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के सामने हाथ ना फैलाये। इसलिये वे हमेशा ऐसे जरुरतमंद लोगों की मदद करने के लिये तैयार रहते हैं।

 

मुझे याद है श्री शुक्ल किसी काम के सिलसिले में लखनऊ आये थे। मेरी उनसे मुलाकात हुयी तो मैंने सोचा कि असिस्टेंट कमीश्नर,सेल टैक्स ‘भौकाल‘ के साथ आयेंगे लेकिन मेरी सोच गलत साबित हुयी। गाड़ी से उतरने वाल शख्स बेहद ‘सादगी’ और ‘मुस्कान‘ बिखेरते हुये मिले। मैं खुद अचकचा गया कि क्या मेरे सामने असिस्टेंट कमिश्नर खड़े हैं, ‘खिचड़ी दाढ़ी’ लेकिन चेहरे पर आत्म विश्वास सा मुस्कान लिये उस शख्स यानि जयप्रकाश शुक्ल ने दिल जीत लिया। बातों का सिलसिला चलने लगा तेा उन्होंने गांव की गलियों से लेकर संगम नगरी (इलाहाबाद) के सफरनामे पर खुलकर बातचीत की। शुक्ल जी के बारे में यही कह सकता हूं कि वे गरीब,मजलूमों के लिये ‘आम’ नहीं ‘शख्यियत’ बन चुके हैं।
‘कोई जब राह न पाये, मेरे संग आये’... को जीवन का मूलमंत्र लेकर चलने वाले सरकारी सेवक जयप्रकाश शुक्ल जब किसी बेसहारा को देखते हैं तो वह अपनी सीमा से परे जाकर उसकी मदद करने की सोचते हैं। गरीब प्रतियोगी हो या समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग कोई व्यक्ति, उसकी सीमा के बाहर जाकर सहायता करने का ‘जज्बा’ उन्हें दूसरों से अलग करता है। सरकारी सेवक होने के साथ ही वह सजग सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वे गरीब, बेसहारा छात्रों को कॉपी, किताब, फ ीस, मेज-कुर्सी आदि देकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिये प्रेरित करते हैं। साक्षात्कार में शामिल हो रहे प्रतियोगियों के लिये वह मार्गदर्शक तथा अभिभावक बनकर मदद करते हैं। 15 वर्षों में उनके सहयोग से दिव्यांग, असहाय लोगों की मदद मिली और वे अपने पैरों पर खड़े हो गये हैं। दिव्यांग जनों को धूमधाम से शादी के पवित्र बंधन में बांधने का काम लंबे समय से करते चले आ रहे हैं। विवाह के दौरान श्री शुक्ल नव-दंपति को घर गृहस्ती का हर सामान उपलब्ध कराते हैं ताकि नवदम्पति का परिवारिक जीवन निर्वाह अच्छे से हो सके। अब तक इनके और उनके सहयोगियों द्वारा 350 से अधिक जोड़ों को वैवाहिक बंधन में जोड़ा जा चुका है। यह सिलसिला लगातार जारी रहे, इसके लिये जयप्रकाश द्वारा लगायी गयी प्रकाश की लौ लगातार तेज हो रही है।


उन्होंने बताया कि आज तक अपने साथियों के साथ मिलकर सैकड़ों दिव्यांग लोगों को चलित दुकान ट्राई साइकिल बनवा कर सामान सहित उपलब्ध करा चुका हूं। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिये सामान के साथ सिलाई मशीन उपलब्ध करा चुका हूं। जब कभी ब्लड की जरूरत पड़ती है तो ‘गंगा मईया’ की नगरी के लोग जयप्रकाश को जरूर याद करते हैं। अपने साथियों के साथ मिलकर हजारों यूनिट ब्लड डोनेट कराने का काम किया है और आगे भी करते रहेंगे ताकि लोगों की जिंदगी बचे। ऐसा बताते हुये जय प्रकाश भाई के चेहरे पर गजब की मुस्कान देखने को मिली…। बातों का सिलसिला बढ़ाते हुये उन्होंने बताया कि पढ़ाई के समय से ही मदद एवं सेवा भाव होने के कारण प्राकृतिक आपदा के समय चाहे बाढ़ से पीडि़त हो, सुनामी में तबाही हो या कहीं आग लग जाये, हमेशा अपने दोस्तों के साथ आगे बढ़ कर मदद करता रहा। सिविल सर्विसेज तैयारी के समय से ही गांधी अकादमी संस्थान के माध्यम से कई हजार छात्र- छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा दिलाया। श्री मिश्र की पत्नी प्रीति शुक्ला बरेली में होमगार्ड विभाग में कमांडेंट के पद पर कार्यरत हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने इन सभी कार्यों के लिये कभी सरकारी मदद नहीं ली…। द संडे व्यूज़ परिवार ऐसे ‘शख्सियत’ को सलाम करता है…

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