श्रावण मास में आने वाली शिवरात्रि को श्रावण शिवरात्रि नाम से जाना जाता है। समुद्र मंथन के समय वासुकि नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और समुद्र के जल में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह ज्वालाएं संपूर्ण आकाश में फैलकर समस्त जगत को जलाने लगी। यह देख भगवान शिव ने तत्काल उस विष को पीकर अपनी योग शक्ति के उसे कंठ में धारण कर लिया, तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए।
विष के प्रभाव को दूर करने के लिए भगवान शिव ने अपने ललाट पर चंद्रमा को धारण कर लिया तब से उनका नाम चंद्रशेखर पड़ा। भगवान शिव द्वारा इस विपदा को दूर करने पर चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों ने रात्रिभर भोलेनाथ की महिमा का गुणगान किया। यह महान रात्रि तब से शिवरात्रि नाम से जानी गई। भगवान शिव सदा कल्याणकारी हैं। शिवरात्रि का त्योहार युगों से मनाया जा रहा है। शिवरात्रि पर्व को लेकर माना जाता है कि यह रात मानव शरीर को संपूर्ण बनाती है। कहा जाता है कि शिवरात्रि की रात को भगवान शिव तांडव करते हैं।
इस त्योहार का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस त्योहार पर व्रत रखें और ओम नमः शिवाय का जाप करते रहें। शिव चालीसा का पाठ कर भोलेनाथ की स्तुति करें। इस त्योहार पर रातभर न सोएं और भगवान शिव का मनन करते हुए रात व्यतीत करें। भगवान शिव की कथा सुनें, गीत गाएं, मंत्रों का जाप करें। इस दिन शिव मंदिरों में रातभर पूजा-अर्चना की जाती है। घर में भी पूजा-पाठ करें। शिवरात्रि के दिन जरूरतमंदों को प्रसाद, भोजन, कपड़े और अन्य सामान का दान करें। इस त्योहार पर हर तरह के भोग से दूर रहें। शिवरात्रि पर पूरी श्रद्धा के साथ माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-उपासना करें।