अक्षत श्री.
माता पिता ने बचपन से शौकीन बनाया है और सबसे ऊंचा शौक ईमानदारी बताया है। इसलिये एक स्वरचित कविता के माध्यम से उनकी कुर्बानी एवं अहमियत को शब्दों में पिरोने का नाकामयाब प्रयास किया है…
. अपने बारे में यही बताऊंगा कि नये ज़माने का पुराना सा लड़का हूं मैं, रोज़ सवेरे की शुरुआत माता पिता के पैर छूकर करता हूं मैं।
. मेरे इस वजूद का सफऱ, एक मन्नत के जन्नत पहुंचने तक का सिलसिला था…
. हैरान थे फरिश्ते ! बिन मेरे अस्तित्व के, मेरे कपड़े-खिलौनों का दाम और जिसे करना है अब रौशन उस मन्नत में वह नाम मिला था…
. एक आदमी की पिता बनने की अर्जी और एक औरत की मां बनने की चाहत के आगे वो खुदा भी घुटने टेक दिया,वो मन्नत पूर्ण करने खातिर, मुझे इस जहां में भेज दिया।
. ये बात तब की है जब मेरी आंखे तो खुल गई थी पर नजऱों के सामने अंधेरा था मगर वो मंजर मेरे माता-पिता के लिये मानों कई अंधेरी रातों के बाद उजाले भरा सवेरा था…
. सर पर हाथ फेर कर सहला देती थी वो, हो मर्ज़ चाहे जैसा भी खुद ही दवा बना लेती थी वो जो साथ बैठ जायें मेरे सारे शिकवे गिले मिटा देती थी वो…
. मां ही जीवन है धरती पर, मातृत्व ही जीवन का सार है, यही एक सत्य है ब्रह्माण्ड का बाकी सब बेकार है… मेरी हर बदतमीजी को हंस कर टाल देती है,
. इतनी भोली है, मेरी बदसलूकी को मज़ाक मान लेती है। जीवन का संकलन, मेरे अस्तित्व का दर्पण है मां, मेरे भले बुरे का अंाकलन है मां।
. मां का स्वरूप कुछ निराला है, मेरा वजूद क्या है ? इसका भक्त तो स्वयं बंसीवाला है। मेरे सिर्फ आज नहीं, कल को भी याद रखती है, मां है ! बेटे संग बिताये हर पल को याद रखती है
. उसकी उम्र भी मुझे लग जाये, खुदा से बस एक यही मुराद रखती है। खूबसूरत इतना है यह रिश्ता, गर्भ में पल रहे बच्चे की सांसे भी मां की सांस से चलती है।
. टूटते हुये घरों के बीच, परिवार की बुनियाद बनते मैंने अपने पिता को देखा है रोज़ सवेरे दफ्तर जाते, तप्ती धूप में मेहनत करते, पसीने से तरबतर चेहरे पर थकावट लिये घर लौटते देखा है…
. फिर उसी पल मेरा चेहरा देखकर उसके चेहरे पर आने वाले नूर से लेकर मुझे अपनी बाहों में भरने पर जो मिलता है उसे सुकून, उस सुकून तक को महसूस करके देखा है।
. दुनिया से लड़ जाता है वो आदमी, पर मेरी हर एक जि़द पर उसे हारते देखा है। ख्वाहिश चाहे हैसियत से बाहर की कर दू मैं, उसने कभी ना नहीं किया, हां! मेरे पिता को मेरे लिये चांद सितारे तोड़ते देखा है।
. उसके खुद के ख्वाब अधूरे दफ्न है उसके ज़ेहन में पर मेरे लिए बड़े- बड़े सपने बुनते देखा है खुदा कहां टिक सकेगा उसके आगे ? वो जो मां है ना मेरी जन्नत सी! उसे भी मेरे पिता के पैर छूूते देखा है।
. मेरी कलम से निकलती स्याही की एक-एक बूंद से गूंज आ रही है कि कैसे बतलायेगा माता-पिता की अहमियत शब्दों में ?
. विराम लगा कर यही कहूंगा कि माता पिता की कुर्बानियों को उनका फर्ज़ मत समझना, जब होंगे लाचार तो उन्हें मर्ज़ मत समझना
क्योंकि चाहें जितनी ऊंचाइयों पे पहुंच जाओ पर सबसे पहली उछाल पिता की गोद से ही मिली थी
. चाहें जितने ताकतवर हो जाओ पर जब निर्बल थे तो मां के लगाये काले टीके से ही ताकत मिली थी। बनना हो तो गणपति से बन जाना
. लोग कहते रहेंगे तुम माता-पिता की परिक्रमा कर जाना और अगर वृद्धाश्रम में उन्हें छोड़कर तुम दुनिया के सामने काबिल बनते हो तो इससे बड़ी हिमाकत हो नहीं सकती
पर करना हो प्रायश्चित तो एक छोटा सा काम कर देना, बचपन में थक कर सो जाते थे ना उनके कंधों पर ?
. जब वह आखिरी नींद सो जायेंगे तो अपने कंधों पर उन्हें अलविदा कर देना। पल भर में पाप धुल जायेंगे, तुम मन्नत हो ना उनकी ! भला कैसे श्रापित कर पायेंगे ? माता-पिता की रूह होगी वो, जाते -जाते भी आशीर्वाद देकर जायेंगे…