जेल की सुरक्षा को भेंद नहीं पायेंगे कैदी,मुख्यालय के अफसरों की लगी है सभी जेलों पर चौकन्नी निगाहें : आनंद कुमार

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कैदी पाल रहे हैं गाय तो खाने को मिल रही है हाईटेक मशीन की रोटियां: आनंद कुमार

मुख्यमंत्री की देन है कि जेल अफसरों के हौसले मस्त,माफियाओं के हौसले पस्त,

जेल मंत्री ने बदल डाली है कैदियों की मनोदशा,गायत्री मंत्र,महामृत्युंजय मंत्र जप रहे हैं अपराधी


  दिव्यांश श्री.
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की जेलों में कभी माफियाओं का वर्चस्व था। ईमानदार जेल अधिकारी और कर्मचारी डर-डर कर काम करते थे लेकिन अब…। मुख्यमंत्री येागी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से जहां जेल अधिकारियों के हौसले बढ़ गये हैं वहीं,जेल की सलाखों में बंद माफिया अपनी जान की भीख मांग रहे हैं। जेलों को हाईटेक बना दिया गया है ताकि मुख्यालय पर बैठे अधिकारी माफियाओं,बंदियों की एक-एक हरकत पर चौकन्नी निगाहें यहीं बैठे-बैठे रख सके। जहां सजायाफ्ता माफियाओं के हौसलों को तोडऩे का काम किया गया है वहीं बंदियों के मानसिक सुधार के साथ-साथ उन्हें जरूरत की सुविधायें दिलाने की हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। ये सरकार की ही देन है कि जेल के पाकशालाओं को हाईटेक बनाया गया है ताकि कैदियों को मशीनों की बनी गरम रोटियां खाने को मिले। इसी तरह, 15 जेलों में गौशाला बनाये गये हैं जिसमें 900 गाय पली हैं। गायों की सेवा कर बंदी आध्यात्मिक और आत्मिक शांति महसूस करते हैं। द संडे व्यूज़ से खास बातचीत में डीजी,जेल आनंद कुमार ने खुलकर बात की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश…

डीजी,जेल आनंद कुमार ने बताया कि भारत की विभिन्न जेलों में सजायाफ्ता बंदियों की कुल आबादी का लगभग 24 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद हैं। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की जेलों में पर्याप्त ओवर क्राउडिंग है लेकिन सरकार नये जेलों के निर्माण पर भी काम कर रही है। जेलों में बड़े पैमाने पर दिख रहे सुधार पर श्री कुमार ने कहा कि सब कुछ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देन है। माफियाओं के हौसले पस्त हुये हैं और अब उन्हें समझ आ गया है कि जेल सिर्फ जेल है ना कि आरामगाह…। इसी तरह,जेल मंत्री धर्मवीर प्रजापति ने कैदियों की मानसिकता में सुधार लाने के लिये गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की शुरूआत की,उसका कैदियों की मानसिकता में व्यापक स्तर पर बदलाव देखने को मिल रहा है। जेलों की सुरक्षा का मजबूत करने के लिये क्या कर रहे हैं? इस पर आनंद कुमार ने बताया कि मेरी पहली प्राथमिकता रही है कि जेलों में सुधार दिखे और हमारे अधिकारियों व कर्मचारियों का मनोबल बढ़े। जेलों में अचूक सुरक्षा और आधुनिकीकरण का काम किया गया है। जेल विभाग का चार्ज संभालते ही सबसे पहले इन्हीं दोनों मोर्चों पर काम किया और कामयाबी मिल रही है।
डीजी ने बताया कि उन्होंने जेलों की सीधी मानिटरिंग और निगरानी के लिये आर्टिफि शियल इंटेलिजेंस सिस्टम का विकास किया। मुख्यालय में 8 गुणे10 वर्ग फु ट की वीडियो वाल की स्थापना करायी। जेलों में लगे 2750 सीसीटीवी कैमरों की लाइव फीड सीधे हेडक्वार्टर के कमांड सेंटर में 24 गुणे 7 देखी जा रही है। यही वजह है कि बड़े से बड़े अपराधी भी थर्राये हुये हैं। इसके अलावा जेलकर्मी भी ड्यूटी पर चौकन्ने रहते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि उनकी करतूत पर मुख्यालय के अधिकारियों की नजरें गड़ी हुयी है। मेरी तैनाती से पहले जेलों में निरुद्ध कुख्यात अपराधी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ जेल अधिकारियों को जान से मारने की धमकी देकर दबाव में लेने का प्रयास करते थे। कर्तव्य पालन करने वाले अधिकारियों को जेलों से वीडियो वायरल करके निलंबित कराने की धमकी तक देते थे, जिसकी वजह से बेहतरीन काम करने वाले अधिकारी भी हमेशा दोहरी दंडात्मक कार्यवाही
का कोपभाजन झेलते थे।

मसलन, एक तरफ अपराधियों से तो दूसरी तरफ जेल मुख्यालय से दंडित होने का भय सताता रहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि मुख्यालय पर बैठे अधिकारियों की टीम की नजरों से कोई बच नहीं सकता। कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने के लिये पहले जेलों में कोई पुरस्कार और प्रोत्साहन की व्यवस्था नहीं थी। बंदियों द्वारा गलत काम करने पर हमेशा जेलकर्मी ही दंडित होते थे, इससे सभी का मनोबल गिरता जा रहा था। इसे मैंने चुनौती के रूप में स्वीकार किया और मुख्यालय स्तर से सभी जिलों के डी.एम. और एस. पी. से समन्वय स्थापित करके जेलों में व्यवस्था को सुधारने का सहयोग लिया गया। उन्होंने जेल कर्मियों को सीधा संदेश दिया कि कुख्यात अपराधियों पर बहादुरी से नियंत्रण करें, जेलों में मोबाइल व अन्य आपत्तिजनक सामान रखने वाले बंदियों से जेल कर्मियों को डरने की जरुरत नहीं है। बेखौफ होकर काम करें। इसी तरह, एक संदेश यह भी दिया कि बंदियों तक अवैध सामान व मोबाइल पहुंचाने का कृत्य करने वाले जेल कर्मियों को किसी सूरत मेंबख्शा नहीं जायेगा। ऐसे कर्मचारियों को कठोर दंड से दंडित करने के लिये प्रिजन एक्ट 1884 में संसोधन करके उसे अधिक शक्तिशाली और कठोर बनाया गया है,जिसके अच्छे परिणाम आये हैं।

श्री कुमार ने बताया कि प्रदेश की जेलों में लंबे समय से भर्ती न होने के कारण सुरक्षा कर्मियों की संख्या आवश्यकता से काफ ी कम हो गयी थी,जिसकी वजह से जेलों में कैदियों का दबदबा था, अनुशासनहीनता का माहौल था। इसके लिये शासन से अनुरोध करके 3638 नये बंदी रक्षकों की भर्ती करायी गयी। इसके उलट अच्छा काम करने वाले जेल कर्मियों को पुलिस विभाग की तरह वर्ष में दो बार15 अगस्त और 26 जनवरी को सिल्वर और गोल्ड डिस्क देने की नई परम्परा की शुरु आत की। अभी तक लगभग 550 जेलकर्मियों को कमेंडेशन डिस्क दिया जा चुका है। यही वजह है कि जेल कर्मियों में बढ़-चढ़कर अच्छा काम करने का स्वस्थ प्रतिस्पर्धी माहौल स्थापित हुआ है। आज स्थिति यह है कि जेल मोबाइल विहीन हो गयी है और जेल मैनुअल के अनुसार जेलों में कठोर अनुशासन स्थापित है।

कोरोना काल में भी बंंदियों ने बड़े पैमाने पर मास्क बनाया और बंदियों को कोरोना से बचाने में भी आपलोगों की अहम भूमिका दिखी? हां, उत्तर प्रदेश की जेलों में ओवर क्राउडिंग के चलते कोविड के प्रसार की आशंका थी किन्तु समय रहते किये गये अचूक और वैज्ञानिक प्रबंधन से पूरे देश की अपेक्षा उत्तर प्रदेश की जेलों में कोरोना का प्रभाव ना के बराबर रहा। कोविड प्रबंधन की सीधी मॅानिटरिंग मुख्यालय के वीडियो वालों के माध्यम से की गयी और जेलों को युद्ध स्तर पर मास्क बनाने का निर्देश दिया गया। इसका परिणाम यह रहा कि जेलों में बंदियों ने लगभग 30 लाख मास्क और 2800 पीपीई किट बनाये जो अपनी आवश्यकताओं के लिये तो पर्याप्त थे ही विभिन्न एनजीओ और सरकारी संस्थाओं को भी लाखों की संख्या में मास्क और सैकड़ों पीपीई किट प्रदान किया गया। मैंने अधिकारियों से सीधे तौर पर कहा कि बंदियों को सुरक्षित रखना ही जेलों का आखिरी मकसद नहीं है। सजा काट रहे बंदियों को सुधार कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में उपयोगी नागरिक के रूप में स्थापित करना भी महत्वपूर्ण और आवश्यक दायित्व है।

बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये क्या किया जा रहा है? इस पर श्री कुमार ने बताया कि प्रदेश की जेलों में बंदियों को कौशल विकास कार्यक्रम के तहत उद्योग और व्यवसाय संबंधी नये-नये और आधुनिक कार्यों के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं। इसमें केंद्र सरकार के कौशल विकास मंत्रालय का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसी तरह, विभिन्न एनजीओ और निजी कंपनियों के सहयोग से व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिये एमओयू किये गये हैं। बहुत जल्द जेलों के उत्पाद ई.कॉमर्स साइट पर उपलब्ध कराने का प्रयास भी साथ- साथ चल रहा है। विभिन्न जेलों में बंदियों द्वारा बनाये जा रहे उत्पाद जन सामान्य के लिये बिक्री के लिये एक किओस्क जेल मुख्यालय के बाहर आनंद नगर,पुरानी जेल रोड पर लगाया गया है। जहंा बंदियों द्वारा उत्पादित ट्रैक सूट, अचार, विभिन्न प्रकार के नमकीन, बिस्किट, बेकरी प्रोडक्ट, लकड़ी के सामान, सरसों का तेल, फ र्नीचर आदि बिक्री के लिये उपलब्ध हैं, जो व्यापक रूप से बहुत लोकप्रिय है।
बंदियों के मानसिक संतुलन को बनाये रखने के लिये भी कोई पहल हो रही है? जी हां, मैंने सभी जेल अधिकारियों को निर्देश दे रखा है कि बंदियों को शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के उद्देश्य से खेलकूद, योग और धार्मिक, आध्यात्मिक, मनोरंजन गतिविधियों को निरंतर चलाते रहें ताकि उनमें मानसिक सुधार दिखे। इसी तरह, 25 जेलों में बंदियों द्वारा संचालित जेल रेडियो स्थापित किया गया है जिनमें स्वयं बंदी ही एंकरिंग करते हैं।

कहा जाता है कि जेल में सजायाफ्ता बंदियों को घटिया स्तर का खाना परोसा जाता है। रोटियां जली परोसी जाती है? नहीं। अब जेलों में जाकर देखिये, बंदियों को उच्च गुणवत्ता का भोजन उपलब्ध कराने के लिये पाकशालाओं को हाईटेक बनाया गया है । आज सभी जेलों में जहां आटा गूंथने से लेकर रोटी बनाने तक का काम रोटी मेकर प्लांट से हो रहा है, वहीं सब्जी काटने, सब्जी छीलने का काम भी ऑटोमेटिक मशीनों से चल रहा है । मुख्यमंत्री भी गाय संरक्षण के लिये तमाम योजनायें चलाने का निर्देश दे चुके हैं। क्या जेलों में भी गाय पालन हो रहा है ? प्रदेश की 15 जेलों में सुव्यवस्थित गौशाला स्थापित की गयी है, जिनमें 900 स्वस्थ सुंदर गायों को पाला गया है। जहां बंदी गो सेवा करके आत्मिक, आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं वही बंदियों को चाय के लिये शुद्ध गाय का दूध भी मिलता है और कृषि कार्य के लिये कंपोस्ट खाद भी पर्याप्त रूप में उपलब्ध होती है। 10 अन्य जेलों में भी गौशालाओं को स्थापित करने का कार्य प्रस्तावित है। सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है,क्या जेल में बंद महिला कैदियों को सशक्तिकरण बनाने पर जोर दे रहे हैं ? श्री कुमार ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के लिये भी जेलों में व्यापक प्रबंध किये गये है। उनके स्वास्थ्य की देखभाल के लिये नियमित रूप से महिला चिकित्सक द्वारा स्वास्थ्य परिक्षण की सुविधा दी गयी है। उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के अचार, मुरब्बे जैम-जेली, सिलाई-कढ़ाई-बुनाई, बैग, पर्स के प्रशिक्षण प्रदान किये जा रहे हैं ।

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