छठे चरण में 10 जिलों की 57 सीटों पर रण: क्या सपा के नारद राय भाजपा के दयाशंकर सिंह के चक्रव्यूह को तोड़ पायेंगे ?

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क्या इस बार चुनाव में केतकी सिंह राम गोबिंद चौधरी की जीत का किला धराशायी कर पायेंगी ?

क्या स्वामी प्रसाद मौर्या का दंभी दावा काम करेगा, इस बार वह भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे ?

क्या पूर्व केन्द्रीय मंत्री आर.पी.एन. सिंह पर भारी पड़ेंगे कांग्रेसी लल्लू ?

 संजय पुरबिया

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के छठे चरण में गुरुवार को मतदाता होगा। सभी दिग्गजों की प्रतिष्ठïा दांव पर लगी है। दावे तो सभी प्रत्याशी कर रहे हैं कि भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे लेकिन अंदर ही अंदर सभी सहमे हैं। जनता के मिजाज को किसी भी पार्टी के प्रत्याशी भांप नहीं पा रहे हैं। जनता जान रही है कि सभी के वादे छलावे हैं। सरकार बनाने तक ही तकदक सफेद पैजामा-कुर्ता पहनने वाले दिखेंगे उसके बाद सब लापता…। लेकिन एक बात है कि जनता उसे सिर आंखों पर बिठाकर रख रही है जो विधायक,राज्य मंत्री या मंत्री क्षेत्र में दिखें और जनता की समस्याओं को दूर किये या करने का प्रयास किये। बलिया की बात करें तो भाजपा के दयाशंकर सिंह ने ऐसा चक्रव्यूह रचा है कि सपा के नारद राय के सगे भाई को ही भगवा रंग में रंगकर नारद राय को आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया। दूसरी तरफ,केतकी सिंह ने एक बार फिर सपा के रामगोबिंद चौधरी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरकर उन्हें परास्त करने की ठान ली है। देखना यह भी है कि क्या हर बार सरकार बनाने का दंभी दम भरने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या का जादू इस बार भी चलेगा क्योंकि उनके ही बयान हैं कि कि जब वे बसपा में थे तो सरकार बनीं और भाजपा में गये तो प्रचंड बहुमत से सरकार बनीं,अब…। खैर, द संडे व्यूज़ के खास कार्यक्रम ये जनता है सब जानती है में सच दिखाते-बोलते रहेंगे। अब समय आ गया है छठें चरण के मतदान का और देखना है इस बार मतदाता किनके भाग्य का फैसला सुनाकर फगुवा में नहाने का मजा देते हैं…।

छठे चरण में गुरुवार को  जिन जिलों में वोटिंग होगी उनमें प्रमुख रूप से बलिया, गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती, महाराजगंज, अंबेडकरनगर, बलरामपुर, देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर शामिल हैं।   छठे चरण के चुनाव में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हैं। वह अपने गृह जिले गोरखुपर से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी किस्मत का फैसला भी 3 मार्च को मतदाता तय करके भेज देंगे। उनके अलावा यूपी सरकार में मंत्री सतीश द्विवेदी कि किस्मत का भी फैसला इसी चरण में होना है। उपेंद्र तिवारी, श्रीराम चौहान व राम स्वरूप शुक्ला भी जिन सीटों पर ताल ठोक रहे हैं, वो इसी चरण में शामिल हैं। विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, बसपा छोड़ सपा में आए लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा, राज किशोर सिंह, स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कि किस्मत भी इसी चरण के चुनाव के भरोसे टिकी है। बलिया की बांसडीह सीट से नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी सपा प्रत्याशी हैं। आठ बार विधायक चुने जा चुके दिग्गज रामगोविंद की राह में रोड़ा अटकाने के लिए भाजपा ने केतकी सिंह को उतार दिया है, जिन्होंने 2017 में भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चौधरी की ऐसी टक्कर दी थी कि वह महज 1687 वोटों से ही जीत पाए थे। इस बार केतकी के साथ भाजपा का मजबूत संगठन और मोदी-योगी का प्रभाव भी है।

इटवा विधानसभा सीट से योगी सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी मैदान में हैं तो उनसे मुकाबले में सपा के कद्दावर नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय खड़े हैं। इसके अलावा सपा के लिए फाजिलनगर सीट भी महत्वपूर्ण है। यहां उसने स्वामी प्रसाद मौर्य पर दांव चला है, जो कि योगी सरकार में मंत्री थे और बगावत कर सपा में शामिल हो गए। स्वामी ने सभी मंचों से दावा किया है कि जब वह बसपा में थे तो बसपा की सरकार बनी और 2017 में भाजपा को भी प्रचंड जीत उन्होंने ही दिलाई। इस बार वह भाजपा का सूपड़ा साफ कर देंगे। स्वामी की हार-जीत से सपा ही नहीं, भाजपा की भी नाक की लड़ाई जुड़ गई है।

इसी तरह कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के रूप में प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी मैदान में हैं। वह कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके लिए चुनौती यह बढ़ गई है कि कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह अब भाजपा में हैं। उनका प्रभाव पडरौना के साथ ही आसपास की तमाम सीटों पर है। क्षेत्र में उनका प्रभाव रहा है, जिससे न सिर्फ लल्लू को जूझना है, बल्कि पडरौना की पुरानी सीट छोड़कर फाजिलनगर से चुनाव लड़ने पहुंचे स्वामी प्रसाद मौर्य को भी पार पाना है। वहीं, बसपा प्रत्याशियों में प्रमुख नाम रसड़ा से चुनाव लड़ रहे उमाशंकर सिंह का है। वह अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। उनकी हार-जीत बसपा के लिए बहुत मायने रखती है।

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