योगी जी स्वतन्त्र मुख्यमंत्री हैं या मुखौटा

 

ये  प्रश्न काफी दिनों से चर्चा में है कुछ बिंदु हैं जिनमे इसका जवाब खोजते है

1–राज्य की प्रशासनिक मशीनरी में ट्रांसफर पोस्टिंग का का सारा काम संगठन मंत्री सुनील बंसल और मोदी जी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र के हाथ में है, वरिष्ठ अधिकारी सीधा उन्हें ही रिपोर्टिंग करते हैं
कई अधिकारियो को योगी जी चाहकर भी हटा नही पाए,न पसन्दीदा अधिकारी तैनात कर पाए!!!!!

2–सुलखान सिंह के रिटायर होने के बाद योगी जी ने ओपीसिंह को यूपी का नया डीजीपी बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा, जिसे जानबूझकर एक महीना तक केंद्र की मोदी सरकार ने लटका कर रखा, एक महीना तक यूपी पुलिस बिना डीजीपी के रही!!
क्या इससे देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री का अपमान नही हुआ??
क्या उनके प्रभाव पर इससे पृश्नचिन्ह नही लगता??

3–निकाय चुनाव में गोरखपुर की सीट पर योगी जी धर्मेन्द्र सिंह को मेयर का टिकट दिलाना चाहते थे पर हद की बात है कि मुख्यमंत्री की इच्छा को दरकिनार करते हुए उनके घर में मेयर का टिकट सुनील बंसल ने किसी दूसरे को दिया और उसे जिताने की जिम्मेदारी योगी पर थोप दी,जैसे तैसे मामूली अंतर से वो जीत पाए!

क्या एक राज्य के मुख्यमंत्री को अपने जिले का मेयर प्रत्याशी चुनने का भी अधिकार नही है?

4–हाल ही में राज्यसभा टिकट का बंटवारा हुआ है, राजा भैया के बेहद ख़ास एमएलसी यशवन्त सिंह ने योगी जी के लिए विधानपरिषद से इस्तीफा दिया जिस सीट पर योगी जी उपचुनाव लड़कर सदन में पहुंचे।
उस समय यशवन्त सिंह को राज्यसभा टिकट दिए जाने का आश्वासन दिया गया था,इसी भरोसे राजा भैया ने फूलपुर लोकसभा में जमकर बीजेपी के लिए प्रचार भी करवाया।

कुछ दिन पहले तक ये तय भी माना जा रहा था कि यशवन्त सिंह को योगी जी राज्यसभा में भिजवा देंगे पर आश्चर्यजनक रूप से यशवन्त सिंह का टिकट काटकर हरनाथ सिंह यादव को थमा दिया गया!!
योगी ने पूरा जोर लगा दिया पर टिकट नही दिलवा पाए और यशवन्त सिंह के साथ विश्वासघात हो गया!!

क्या यूपी के मुख्यमंत्री को राज्यसभा की 10 सीटो में से किसी एक पर अपनी पसन्द का उम्मीदवार बनवाने का भी हक नही है????

5–अब बारी गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव की आई जहाँ तीन दशक से योगी जी के मठ का दबदबा रहा है,
योगी जी ने कई नाम सुझाए जिनमे उनके मठ से जुड़े एक ब्राह्मण सहयोगी, निकाय चुनाव में ठुकराए गए धर्मेन्द्र सिंह और अंत में मठ से जुड़े दलित जाति में जन्मे योगी कमलनाथ का नाम सुझाया।
योगी कमलनाथ को टिकट मिलता तो आसानी से वो सीट निकाल देते।

पर हैरत की बात है कि योगी को नीचा दिखाने के लिए उनके धुर विरोधी रहे शिवप्रताप शुक्ल के विश्वस्त उपेन्द्र शुक्ल को उम्मीदवार बना दिया गया और उसे जिताने की जिम्मेदारी योगी पर सौंप दी गयी!!!!!!!!

पहले योगी की पसन्द के उम्मीदवार को ठुकराकर उनके विरोधी पक्ष को टिकट थमा दिया, उसपर भी योगी ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने को उपेन्द्र शुक्ल को जिताने को पूरा जोर लगा दिया,
फिर जिन लोगो ने साजिश करके टिकट करवाया, उन्होंने ही बसपा नेता हरिशंकर तिवारी से मिलकर उपेन्द्र शुक्ल को हरवा भी दिया जिससे हार का जिम्मेदार योगी को बताकर उनकी छवि को ध्वस्त किया जा सके!!!

क्या एक मुख्यमंत्री को अपनी परम्परागत सीट पर अपनी मर्जी से उम्मीदवार चुनने का हक नही है?????

असल में योगी जी बेचारे मुखौटा भर हैं शासन प्रशासन को सीधे अमित शाह सुनील बंसल के माध्यम से चला रहे हैं, योगी जी सिर्फ नाम के मुख्यमंत्री हैं ।

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