लखनऊ – ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड (AIMPLB) की ओर से हर जिले में शरिया अदालतें खोलने की योजना शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसिम रिजवी ने इसका कड़ा विरोध किया। वसीम रिजवी ने कहा कि अब ये बात खुल चुकी है कि हिंदुस्तान में 80 शरिया अदालते चल रही हैं और 200 से लेकर 300 तक काजी भी इसके लिए नियुक्त किए जा चुके हैं। काज़ी का मतलब यहा शरिया अदालतों का जज।
रिजवी ने सवाल किया कि भारत देश में जब जज संविधान के तहत नियुक्त किए जाते हैं तो ये शरिया अदालत के जज कौन नियुक्त कर रहा है। इस्लामिक देश में शरिया अदालतों के जज भी हुकूमत नियुक्त करती है। हिन्दुस्तान में कौन कर रहा है जबकि हिन्दुस्तान संविधान के तहत चल रहा है तो फिर शरिया अदालत कहां से आईं।
वसीम रिजवी ने इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि जब भारत का अपना संविधान है तो उसके समांतर शरिया कानून चलाने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कौन होता है। मैं सरकार से मांग करता हूं कि ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड पर प्रतिबंध लगना चाहिए। संविधान के समांतर अपना अलग कानून बनाकर चलना देश-द्रोह है। वसीम रिजवी ने यहां तक कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर प्रतिबंध लगना चाहिए। साथ ही साथ उन सब पर भी देशद्रोह का मुकदमा लगना चाहिए जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पदाधिकारी हैं और उसके सदस्य हैं।
इन्हें शरिया अदालत नहीं कहते, ये दारुल कजा हैं – जफरयाब जिलानी
वहीं इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने सफाई देते हुए कहा कि ‘हम इन्हें शरिया अदालत नहीं कहते, ये दारुल कजा हैं। इनमें काज़ी लोगों के वैवाहिक मतभेद और झगड़े सुलझाता है और अगर मामले का निपटारा नहीं हो पाता तो अलग होने के रास्ते सुझाता है’
साथ ही साथ जफरयाब जिलानी ने यह भी कहा कि ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस तरह की व्यवस्था 1993 में शुरू की थी, यह कोई नई बात नहीं है। केंद्र सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है’, उनका कहना है ‘इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी जारी रखने की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि यह को समानांतर कोर्ट नहीं है’।
गौरतलब है कि बता दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 15 जुलाई को इस मामले में एक महत्वपूर्ण बैठक करने जा रहा है। जिससे वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरिया कानून के फलसफे और तर्कों के बारे में बताने वाले कार्यक्रमों का सिलसिला और तेज करने पर विचार करेगा।
बोर्ड की कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जिलानी ने बताया कि बोर्ड की अगली 15 जुलाई को लखनऊ में होने वाली बैठक अब उसी तारीख को ये बैठक अब दिल्ली में होगी। इस बैठक में अन्य मुद्दों के अलावा बोर्ड की तफ़हीम-ए-शरीयत कमेटी को और सक्रिय करने पर विचार-विमर्श होगा। जफरयाब जिलानी ने बताया कि दारुल-क़ज़ा कमेटी का मकसद है कि हर जिले में शरिया अदालतें हों, ताकि मुस्लिम लोग अपने शरिया मसलों को अन्य अदालतों में ले जाने के बजाय दारुल-क़ज़ा में सुलझायें।
इसी मामले को लेकर बीजेपी और शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने दारुल-कज़ा का विरोध करते हुए इसे संविधान के विरूद्ध बताया है।