दूधिया मशरूम उत्पादन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

 

पंचदेव यादव की रिपोर्ट,

दूधिया मशरूम उत्पादन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

दूधिया मशरूम की खेती पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आईसीएआर-सीआईएसएच, लखनऊ में 21 मार्च 2018 को आयोजित किया गया था। दूधिया मशरूम किसानों में आम नहीं है लेकिन उपभोक्ताओं के क्रमिक हित के साथ यह लोकप्रिय हो रहा है और सीआईएसएच इस पर प्रशिक्षण का विचार करता है। किसान के लाभ में वृद्धि के लिए मशरूम के साथ-साथ संसाधनों का उपयोग करते हैं जब बटन मशरूम का मौसम खत्म होता है।

ट्रेनिंग के दौरान यह मुख्य विषय था कि जब सारी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है तो मशरूम की खेती इतनी लोकप्रिय क्यों नहीं हो पा रही है| कई उद्यमी मशरूम की खेती में अधिक लाभ की संभावनाओं को देखकर  रुचि लेते हैं परंतु शुरु-शुरु में आई  असफलताओं के कारण  आमतौर पर अधिकतर समस्याओं  को इंटरनेट पर वीडियो को देखकर नहीं सुलझाया जा सकता है| मशरूम उत्पादन के लिए ज्ञान ही नहीं परंतु शुरू-शुरू में धैर्य की भी आवश्यकता है| उत्तर प्रदेश में मशरूम की खेती के क्षेत्र में न केवल जानकारी की कमी के कारण बल्कि विभिन्न मशरूम प्रजातियों की अच्छी गुणवत्ता वाले   बीज की कमी के कारण भी अधिक संख्या में मशरूम उत्पादक नहीं है|

उन्नाव के श्री अटल बिहारी वाजपेई ने संस्थान के वैज्ञानिकों से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया और उन्होंने अपने अनुभवों को प्रतिभागियों के साथ साझा करते हुए बताया कि कैसे 5 साल पहले भी कई बार असफल हुए और हिम्मत ना हारते हुए आज एक सफल मशरूम उत्पादक है| प्रतिदिन वह एक से डेढ़ क्विंटल मशरूम पैदा करते हैं जिसकी अच्छी खासी मांग है|  नए उद्यमियों का मनोबल बढ़ाने में इस प्रकार के  मशरूम उत्पादन में अनुभवी व्यक्ति  प्रभावी होते हैं साथ ही साथ उनकी समस्याओं  के निराकरण के लिए विभिन्न उपाय भी साझा करते हैं|

बहुत से नए उद्यमियों का मानना था कि उन्हें मशरूम का बीज आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता है इस विषय पर संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर वीके शुक्ला ने उन्हें आश्वस्त कराया कि किस प्रकार से वह मशरूम बीज को उपलब्ध तो कराते ही हैं साथ ही साथ वह इसके उत्पादन के लिए भी सहायता प्रदान कर सकते हैं| उन्होंने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से किसानों की मांग के अनुसार मशरूम बीज उपलब्ध कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है| शुरु-शुरु में जब कम मात्रा में बीज की आवश्यकता होती थी तब से लेकर आज जब अधिक मांग हो गई है,  वह निरंतर किसानों को बीज उपलब्ध करा रहे हैं|
प्रशिक्षणार्थियों ने न केवल उत्पादन तकनीकी वरन मशरूम के विपणन पर भी विचार विमर्श किया और यह महसूस किया कि उत्पादकों द्वारा स्वयं मार्केटिंग करके मशरूम उत्पादन को लाभदायक  बनाया जा सकता है अगर सभी उत्पादक एक नेटवर्क बना लें तो  इस कार्य में अधिक  सफलता मिलती है|मशरूम व्हाट्सएप समूह का एक उदाहरण यह दर्शाया गया  कि  मशरूम विपणन में अनुभवी व्यक्ति को समूह का सदस्य बना कर  बाजार में इनकी मांग बढ़ाई जा सकती है

मशरूम एक शीघ्र खराब होने  वाली वस्तु है और यदि इसका ठीक से रखरखाव न किया जाए तो बाजार मूल्य कम हो जाता है किसानों को बहुत से ऐसे सुझाव दिए गए जिससे यह उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और मशरूम के सफेद रंग  एवं ताजगी को बनाए रख सकते हैं| मशरूम उत्पादन में स्वच्छता  के महत्व पर भी चर्चा की गई  तथा डॉ। पीके शुक्ला ने उद्यमियों को नियमित  रूप से  संस्थान द्वारा मशरूम उत्पादकों को तकनीकी सहायता एवं परामर्श देने हेतु आश्वस्त किया|

प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों ने मशरूम उत्पादन के विभिन्न चरणों के लिए आवश्यक क्रियाओं को स्वयं अपने हाथों द्वारा किया जिससे कि उन्हें सब्सट्रेट बनाना उसका पाश्चरायझेशन प्रकाश पानी का अनुभव प्राप्त हो जाए| प्रशिक्षण के दौरान  विभिन्न  समस्याओं पर विचार विमर्श किया गया और  निराकरण के संबंध में सलाह दी गई| प्रशिक्षण में 120 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया  और विशेष तौर पर मोहम्मद नगर तालुकदारी गांव से 10 महिलाओं ने भी  मशरूम उत्पादन के गुर सीखे| इस कार्यक्रम के दौरान डॉक्टर अरिमर्दन  सिंह,  संस्थान के निदेशक डॉक्टर शैलेंद्र एवं डॉ मनीष मिश्रा ने भाग लिया|

शैलेंद्र राजन निदेशक
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ 226101

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