केले के परखनली पौधों द्वारा रोजगार के नए अवसरों का सृजन

केले के परखनली पौधों द्वारा रोजगार के नए अवसरों का सृजन।
उत्तर प्रदेश में केले की खेती तेज़ी से बढ़ रही है। किसानो के बीच केले के टिश्यू कल्चर या परखनली में उगे पौधों की भारी मांग है| ये पौधे जहाँ एक ओर समरूपी होते है वही ये विषाणु जनित बीमारियों से मुक्त होते है साथ ही ये पुत्ती की तुलना में 25 प्रतिशत उपज ज्यादा देते है। पुत्ती प्रवर्धित पौधे जहाँ 18 महीने से 2 साल के बीच फलत देने लगते है वही परखनली पौधे 12-16 माह में फलत देना शुरू कर देते इन गुणों के चलते ग्रैंड नैन किस्म के टिश्यू कल्चर पौधों की बाजार में भारी मांग है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन बताते है है कि उत्तर प्रदेश में केले की खेती में अभूतपूर्व तेज़ी दर्ज की गयी है गुणवत्ता युक्त पौध सामग्री की मांग भी तेज़ी से बढ़ी है। परंपरागत विधि से केले की खेती में बीमारियों के फैलने की आशंका हमेशा बनी रहती है और इसलिए बड़ी संख्या में टिश्यू कल्चर द्वारा पौधों को बनाने की जरूरत है डॉ. राजन बताते है की देश में कोई60 के करीब टिश्यू कल्चर कम्पनिया है जो बड़ी मात्रा में केले के पौधे बना रही है| ज्यादातर प्रयोगशालाए महाराष्ट्र , कर्नाटक और गुजरात में स्थित है|उत्तर प्रदेश इस दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ है और यहाँ कुल तीन ऐसी लघु स्तर की व्यावसायिक प्रयोगशालाए है। ज्यादातर पौधे ट्रको द्वारा महाराष्ट्र, कर्नाटक या गुजरात से आता है जिससे की पौध की कीमत में इजाफा होता है टिश्यू कल्चर पौधों को प्रयोगशाला में नियंत्रित दशाओ में वैज्ञानिक विधि से बनाया जाता है इसके उपरान्त इसे दो स्तर पर दशानुकूलित किया जाता है। प्रथम स्तर पर दशानुकूलन नियंत्रित दशाओ में करते है किन्तु द्रितीय स्तर पर प्रशिक्षण पा कर कोई भी व्यक्ति इसे दशानुकूलित करके इसे बेंच सकता है। इस प्रकार यह रोजगार का एक बेहतर अवसर प्रदान करता है उन्होंने बताया की उत्तर प्रदेश में ऐसे पौधों की भारी मांग है  किन्तु उपलब्धता कम है जिससे युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर इस क्षेत्र में तैयार हो रहे है उधमिता को बढ़ावा देने के लिए फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत दो वैज्ञानिको डॉ. मनीष मिश्रा एवं डॉ. दामोदरन ने मलिहाबाद के युवाओं को केले के टिश्यू कल्चर पौधों की द्रितीय स्तर की हार्डनिंग कर नर्सरी तैयार करने का विधिवत प्रशिक्षण दिया डॉ. राजन बताते है है इस प्रशिक्षण का लाभ हुआ और एक युवा श्री एकलव्य दीक्षित आगे आये और और टिश्यू कल्चर के पौधों की नर्सरी को अपने व्यवसाय के रूप में चुना| वैज्ञानिको के सुझाव पर वे बेंगलुरु की एक प्रतिष्ठित प्रयोगशाला से केले के टिश्यू कल्चर पौधों को 6 रुपये प्रति पौध के हिसाब से 50,000 प्राइमरी दशानुकूलित पौधे खरीद के लाये संस्थान के तकनीकी सहयोग से उन्होंने दो शेड नेट हाउस  तैयार करवाए राष्ट्रीय उद्यान बोर्ड से इन्हे 50 प्रतिशत की सब्सिडी भी मिली अनुभव की कमी के चलते इन्हे बहुत सी दिक्कते भी हुई, जलभराव जैसी समस्याओ से पौधों में सड़न जैसी समस्याएं भी आयी किन्तु वैज्ञानिको के मार्गदर्शन से इन्हे लाभ मिला और केले के टिश्यू कल्चर पौधों की नर्सरी सफलता पूर्वक ऊगा कर प्रति पौध 15 रुपये में बेंचने में सफल भी रहे संस्थान समय समय पर उद्यान आधारित उधमिता को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता रहता है। कई युवाओं ने यहाँ प्रशिक्षण पा कर नर्सरी को रोजगार के तौर पर अपनाया है किन्तु मलिहाबाद क्षेत्र में टिश्यू कल्चर केले की नर्सरी का यह पहला प्रयास है ।डॉ. राजन कहते है की रोग मुक्त केले के टिश्यू कल्चर पौधों की नर्सरी एक मुनाफे का सौदा है जिसे युवा कम लागत में रोजगार के विकल्प के तौर पर उत्तर प्रदेश में चुन सकते है। एकलव्य की सफलता की कहानी से और भी शिक्षित बेरोजगार इस दिशा में आगे आएंगे और नए भविष्य का निर्माण करेंगे।

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