क्या ऐसे ही दरकता रहेगा इन मासूमो का बचपन

शैलेन्द्र सिंह चौहान

लखनऊ  सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकार करोडो रूपये पानी की तरह बहा रही है। लेकिन होटलो, ढाबो व अन्य प्रतिष्ठानो मे काम करने वाले बच्चे दो वक्त की रोटी का जुगाड में मेहनत करने के लिए मजबूर है। ऐसेे बच्चो का भविष्य संवारने के लिए सरकारी स्तर पर दावे रोज होते हैे लेकिन वास्तविक हकीकत से परे है। देश के कर्णधार व नौनिहाल मलिको व ग्राहको की प्रताडना झेलने के बाद भी परिवार का पेट भरने के लिए काम करते रहते हे। सब पढे सब बढे का नारा यही आकर दम तोड रहा है। क्या यही है सर्वषिक्षा अभियान की हकीकत।

अर्जुनगंज में के एक होटल पर काम करने वाले 11 वर्षीय रवि सुबह 6 बजे ही चाय बनाने में जुट जाता है। सुबह होटलो पर चाय पीने वालो की भीड एकत्र न होे जाए इससे पहले उसे पूर होटल की सफाई करनी पडती है। परिवार की आर्थिक कमजोरी के चलते उसे होटलो पर मजबूरी वश काम करना पड रहा है। सुबह से शाम तक उसे चाय के जूठे गिलास व बर्तनो को धोना पडता है और चाय बनाकर लोगो को पिलाना पडता है। इसके बावजूद मालिक हो या फिर ग्राहक हर कोई उससे सीधे मुह बात नही करता। फिर भी वह हसते हुए लोगो की खरी खोटी सुनकर अपना काम किया करता है। यही नही बल्कि एक और होटल पर काम करने वाले 10 वर्षीय कौशल देा वक्त की रोटी व चन्द रूपयो के लिए होटल पर काम करने को मजबूर है। होटल पर लोग इस छोटू के नाम से पुकारते है वहा भी परिवार की माली हालत के चलते पांच सौ रूपये में  नौकरी करके दिन पर दिन जूठे बर्तनो को मांजता है व कुर्सी मेजो पर गिरे जूठन को पोछता रहता है।
यू.पी. में एक या दो होटलो में ही नही बल्कि दर्जनो होटल ऐसे है जहां कम उम्र के बच्चे काम करते रहते है। परिवार की आर्थिक तंगी के चलते मानो इन्होने कभी स्कूल की दहलीज न लांघी हो।
गरीबी और लाचारी के चलते समाज में ऐसे भी लोग है जो अपने जिगर के टूकडो को स्कूल भेजने के बजाए होटलो,ढाबों व दुकानो पर सौंप देते हे। और यही से उन मासूम बच्चो का भविष्य अंधकार में चला जाता है।
होटलो, ढाबो व दुकानो पर काम कर रहे बच्चो को देखकर बालश्रम विभाग के दावें भी खोखले नजर आते है। वह सिर्फ कागजी कार्यवाही में उलझा पडा हुआ है लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है। जल्द ही यदि इस पर ध्यान नही दिया गया वह दिन दूर नही जब  नालियों की सफाई से लेकर सारे काम नौनिहाल करते ही नजर आयेंगें

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