विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को अपने चीनी समकक्ष वांग यी से बातचीत की और पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनाव को लेकर उनके बीच हुए मास्को समझौते के अमल पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने सेनाओं की वापसी की स्थिति की समीक्षा भी की। याद दिला दें कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से इतर पिछले साल 10 सितंबर को जयशंकर और वांग यी के बीच पांच सूत्रीय समझौता हुआ था। इसमें सेनाओं को तत्काल पीछे हटाना, तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाइयों से बचना, सीमा प्रबंधन पर सभी समझौतों व प्रोटोकाल का अनुपालन और एलएसी पर शांति बहाल करने के लिए कदम उठाना शामिल था। भारत और चीन के बीच संबंध को दुरुस्त करने के लिए दोनों विदेश मंत्री पहले भी बातचीत कर चुके हैं।
ज्ञात हो कि भारत-चीन संबंधों को लेकर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि एलएसी से टकराव के बिंदुओं से सेनाओं की वापसी के समझौते में भारत सरकार ने अपने किसी भी भूभाग को खोया नहीं है। इस समझौते में भारत की संप्रभुता और अखंडता से किसी तरह का समझौता नहीं किया है। मालूम हो कि हाल ही में भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच 16 घंटे चली बैठक में सैन्य गतिरोध खत्म करने को लेकर गहन बातचीत हुई थी। इसमें दोनों देशों ने एलएसी के दूसरे अग्रिम मोर्चो से टकराव खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति जताई है।
बता दें कि दोनों देशों की सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख में कई महीने तक जारी गतिरोध के बाद उत्तरी और दक्षिणी पैंगोंग क्षेत्र से अपने-अपने सैनिकों एवं हथियारों को पीछे हटा लिया था। हालांकि कुछ मुद्दे अभी बने हुए हैं। समझा जाता है कि बातचीत के दौरान भारत ने गोगरा, हाट स्प्रिंग, देपसांग जैसे क्षेत्रों से भी तेजी से पीछे हटने पर जोर दिया था।
20 फरवरी को मोल्डो/चुशूल सीमा पर चीनी हिस्से में चीन-भारत कोर कमांडर स्तर की बैठक का 10वां दौर आयोजित किया गया था। रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार, इसमें दोनों पक्षों ने पैंगोंग झील क्षेत्र में अग्रिम फौजों की वापसी का सकारात्मक मूल्यांकन किया और इस बात पर जोर दिया कि यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने एलएसी के साथ अन्य शेष मुद्दों के समाधान के लिए एक अच्छा आधार प्रदान किया। एलएसी के साथ अन्य मुद्दों पर उनके विचारों का स्पष्ट और गहन आदान-प्रदान हुआ।